ध्रुव ध्येय रूप चैतन्य रूप प्रभुवर | Dhruv dhyey roop chaitanya roop prabhuvar

(तर्ज : देखो जी आदीश्वर स्वामी… )

ध्रुव ध्येय रूप चैतन्य रूप प्रभुवर प्रत्यक्ष निहारा है॥ टेक॥

है शून्य सर्व पर भावों से, आपूर्ण अहो ! निज भावों से।
श्रद्धेय रूप आनन्द रूप लख, परमानन्द विस्तारा है॥ ॥
भव रहित अहो! भगवान स्वयं है, गुण अनन्त की खान स्वयं।
चित्वमत्कारमय महा प्रभु, निर्मुक्त परम अविकारा है॥ 2॥
व्यवहार प्रपंच न हैं जिसमें, शक्ति अनन्त उछलें जिसमें।
अद्भुत से भी अद्भुत, ज्ञायक ही साँचा तारणहारा है॥ 3॥
मंगलमय मंगलकरण रूप है, स्वयं स्वयं को शरण रूप।
‘शुद्ध चिद्रूपो5हम्‌’ मंत्र महा, बिन जपे-जपे सुखकारा है ॥ 4 ॥
ज्ञायक हूँ सहज ही ज्ञान रहे, ज्ञायक हूँ सहज ही ध्यान रहे ।
निर्भेद सु ज्ञायममय जीवन, ज्ञायकमय नमन हमारा है॥ 5॥
प्रभुवर ज्ञायक, मैं हूँ ज्ञायक, ज्ञायक ही है आश्रय लायक।
है लोक हमारा ज्ञायकमय, ज्ञायक सर्वस्व हमारा है॥ 6॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण