धर्म दशलक्षण धारो जी | Dharm daslakshan dharo ji

भजन

धर्म दशलक्षण धारो जी ।
यही मोक्ष सोपान इन्हीं पर तन-मन वारो जी।
धर्म दशलक्षण धारो जी ॥टेक ॥

उत्तम क्षमा क्रोध का घाता,
उत्तम मार्दव विनय प्रदाता,
उत्तम आर्जव धर्म धार ऋजुता सिंगारो जी।
धर्म दशलक्षण धारो जी ॥ १॥

उत्तम सत्य धर्म सुखकारी,
उत्तम शौच लोभ परिहारी,
उत्तम संयम धर्म हृदय ले मुनिपद धारो जी ।
धर्म दशलक्षण धारो जी ॥ २॥

उत्तम तप निर्जरा कर्म की,
जय जय उत्तम त्याग धर्म की,
उत्तम आकिंचन से निज का रूप संवारो जी ।
धर्म दशलक्षण धारो जी ॥३॥

उत्तम ब्रह्मचर्य विख्याता,
महाशील गुण उर में लाता,
ये दशधर्म कर्म वसु हर्ता सदा विचारो जी ।
धर्म दशलक्षण धारो जी ॥४॥

ये दशलक्षण धर्म सुपावन,
भव्यों को हैं बहु मन-भावन,
इनका पालन कर निज को भवपार उतारो जी ।
धर्म दशलक्षण धारो ही ॥५॥
रचयिता:- कविवर पण्डित राजमल जी पवैया

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