धारा है दिगम्बर वेश | dhara hai digambar bhesh

धारा है दिगम्बर वेश… हो ओ… धारा है दिगम्बर वेश
किया मुक्ति श्री में प्रवेश… वो मुनिवर चल पड़े…२
नहीं राग तन्तु कुछ शेष, परिग्रह अरू राग न द्वेष, वे मुनिवर चल पड़े… ॥

सब राज्य पाट त्यागा… समता धन के स्वामी।
चक्री झुकते पग में, वन्दन अन्तर यामी ।
बहती उपशम रस धार, त्यागा सुत तिय परिवार। वो मुनिवर चल पड़े… २ ॥१॥

दिन रात आत्म चिन्तन… समभावमयी जीवन।
निर्ग्रन्थ दशा कहती कितना पावन है मन ।।
देता जीवन सन्देश, सुख अन्दर बाहर क्लेश। वो मुनिवर चल पड़े… २ ॥२॥

हे शाश्वत् सुख भोगी… शुद्धात्म विलासी हो।
वैराग्यमयी जीवन, निज भाव प्रकाशी हो॥
भव भोग से वैरागी, व्रत धारी बड़भागी। वो मुनिवर चल पड़े… २ ॥३॥

विषयों की आश न मन… परिग्रह का लेश नहीं।
तप ज्ञान ध्यान जल से परणति है नित भीगी।
धनि वनवासी मुनिराज, मुक्ति रमणी सिरताज। वो मुनिवर चल पड़े… २ ॥४॥

रचियता - डॉ. विवेक जैन, छिंदवाडा

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