धन्य मुनीश्वर आतम हित में छोड़ दिया परिवार,
कि तुमने छोड़ा दिया परिवार।
धन छोड़ा वैभव सब छोड़ा, समझा जगत असार,
कि तुमने छोड़ दिया संसार॥
काया की ममता को टारी, करते सहन परीषह भारी।
पंच महाव्रत के ही धारी, तीन रतन के हो भण्डारी ॥
आत्म स्वरूप में झूलते करते निज आतम उद्धार,
कि तुमने छोड़ा सब घरबार।।(1)
राग द्वेष सब तुमने त्यागे, बैर विरोध हृदय से भागे।
परमातम के हो अनुरागे, बैरी कर्म पलायन भागे।
सत् सन्देश सुना भविजन को करते बेड़ा पार,
कि तुमने छोड़ा सब घरबार॥(2)
होय दिगम्बर वन में विचरते, निश्चल होय ध्यान जब करते।
निजपद के आनन्द में झूलते, उपशम रस की धार बरसते।
मुद्रा सौम्य निरखकर मस्तक नमता बारम्बार,
कि तुमने छोड़ा सब घरबार।।(3)