धन्य घड़ी मैं दर्शन पाया, आज हृदय में आनंद छाया।
श्री जिनबिम्ब मनोहर लखकर, जिनवर रूप प्रत्यक्ष दिखाया ।।टेक।।
मुद्रा सौम्य अखण्डित दर्पण, में निज भाव प्रत्यक्ष दिखाया।
निज महिमा सर्वोत्तम लखकर, फूला उर में नहीं समाया ।।1।।
राग प्रतीक जगत में नारी, शस्त्र द्वेष का चिन्ह बताया।
वस्त्र वासना के लक्षण हैं, इन बिन निर्विकार है गाया ।।2।।
जग से निष्पृह अन्तर्दृष्टि, लोकालोक तदपि झलकाया।
अद्भुत स्वच्छ ज्ञान दर्पण में, मुझको ज्ञान ही ज्ञान सुहाया ।।3।।
कर पर कर देखे मैं जब से, नहीं कर्तृत्व भाव उपजाया।
आसन की स्थिरता ने प्रभु, दौड़ धूप का भाव भगाया ।।4।।
निष्कलंक अरु पूर्ण विरागी, एकहि रूप मुझे प्रभु भाया।
निश्चय यही स्वरूप सु मेरा, अंतर में प्रत्यक्ष मिलाया ।।5।।
जिन मुद्रा दृष्टि में बस गयी, भव स्वांगों से चित्त हटाया।
'आत्मन' यही दशा सुखकारी, होवे भाव हृदय उमगाया ।।6।।
Singer: @Deshna