धन्य धन्य जिनराज का दर्शन | dhanya dhanya jinraaj ka darshan

धन्य धन्य जिनराज का दर्शन, धन्य धन्य भक्ति का भाव।
धन्य धन्य जिन चरण स्पर्शन, धन्य धन्य आतम हित चाव। टेक।।

धन्य धन्य जिनवाणी सुनना, तत्त्व निर्णय अरू भेदविज्ञान।
धन्य धन्य शुद्धातम अनुभव, धन्य धन्य सम्यक् श्रद्धान।।1।।

धन्य धन्य वैराग्य भावना, संयम ग्रहण जगत का त्याग।
धन्य धन्य निर्ग्रन्थ रूप है, दर्शन भी पावें बड़ भाग ।2।।

धन्य धन्य आतम आराधन, धन्य धन्य है निर्मल ध्यान।।
जिससे हो श्रेणी आरोहण, घाति कर्म का हो अवसान ।।3।।

धन्य धन्य है अनन्त चतुष्टय, होंय स्वयं ही श्री जिनराज।
धन्य धन्य है तीर्थ प्रवर्तन, होय सफल जग के सब काज । 4 ।।

सहज विनष्टे सर्व अधाति, भव सन्तति की होवे हान।
क्षण भर में लोकाग्र विराजें, प्रगटे अक्षय पद निर्वाण ।।5।।

धन्य दिवस है, धन्य घड़ी है, पाया मंगल जिनशासन।
एक मात्र आत्मार्थ साधना, लक्ष्य से जीवन का पावन् ।6।।

हैं जिनवर आदर्श हमारे, नित्य बोधनी जिनवाणी।
मस्तक पर गुरू वरद हस्त हो, परिणति वर्ते कल्याणी ।7।।

हृदय विराजें श्री जिनराज, संगति पावें श्री मुनिराज।
भक्ति भाव से शीश नवावें, चिन्तें गुण निज मंगलकाज ।।8।।

भेदज्ञान की धारा वर्ते, समतामय परिणति प्रवर्ते।
यही भावना, यही कामना, जग में श्री जिन धर्मप्रवतें । 9।।

हम सब भी अक्षय सुख पावें, दु:खमय आवागमन मिटावें।
हो सम्यक् पुरूषार्थ अलौकिक, निज प्रभुता निज में प्रगटावें ।।10।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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