धन्य आपका दर्शन ज्ञान, धन्य-धन्य सुख वीर्य अहो।
धन्य आपकी प्रभुता अद्भुत, धन्य धन्य जिनरूप अहो।।1।।
धन्य आपकी दिव्यध्वनि प्रभु, धन्य धन्य है जिनशासन।
धन्य धन्य है रत्नत्रय, धन्य धन्य है शुद्धातम ।।2।।
धन्य धन्य है मूर्ति आपकी, धन्य धन्य है समवशरण।
मोह नशावे सुख उपजावे, अखिल विश्व को परम शरण ।।3।।
महाभाग्य से दर्शन पाया, धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ।
मानो रंक लही चिन्तामणि, प्रभुवर परमानंद हुआ। 4 ।।
अन्तर्मुख उपयोग हुआ, अपना प्रभु प्रत्यक्ष हुआ।
अहो! अहो! दुर्मोह नशाया, ज्ञान भानु का उदय हुआ ।।5।।
मैं भी साधैं निज शुद्धातम, भव दु:ख से भयभीत हुआ।
यही भाव उर में उमगाया, प्रभु चरणों में विनत हुआ।6।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’