धनि मुनिराज हमारे हैं …
धनि मुनिराज हमारे हैं, धनि मुनिराज हमारे हैं ॥ टेक।।
सकल प्रपंच रहित निज में रत, परमानन्द विस्तारे हैं।
निर्मोही रागादि रहित हैं, केवल जाननहारे हैं ।।1।।
घोर परीषह उपसर्गों को, सहज ही जीतन हारे हैं।
आत्मध्यान की अग्निमाँहि जो, सकल कर्म-मल जारे हैं ।। 2 ।।
साधैँ सारभूत शुद्धातम, रत्नत्रय निधि धारे हैं ।
तृप्त स्वयं में तुष्ट स्वयं में, काम सुभट संहारे हैं || 3 ||
सहज होंय गुण मूल अट्ठाईस, नग्न रूप अविकारे हैं।
वनवासी व्यवहार कहत हैं, निज में निवसनहारे हैं ।। 4 ।।
रचयिता - बाल ब्र. श्री रवींद्र जी आत्मन्