धन धन जैनी साधु जगत के, तत्त्वज्ञान विलासी हो ।।टेक।।
दर्शन बोधमई निज मूरत, जिनको अपनी भासी हो।
त्यागी अन्य समस्त वस्तु में, अहं बुद्धि दुखदासी हो ।।1।।
जिन अशुभोपयोग की परिणति, सत्ता सहित विनाशी हो।
होय कदाच शुभोपयोग तो, तंह भी रहत उदासी हो ।।2।।
छेदत जे अनादि दुखदायक, द्विविधि बंध की फांसी हो।
मोह क्षोभ रहित निज परिणति, विमल मयंक विलासी हो ।।3।।
विषय चाह दव दाह बुझावन, साम्य सुधा रस रासी हो।
‘भागचंद’ पद ज्ञानानन्दी, साधक सदा हुलासी हो ।।4।।
Artist - श्री भागचंद जी
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धन-धन जैनी साधु अबाधित
तत्त्वज्ञान विलासी हो ।
दर्शन बोधमयी निज मूरत
जिनको अपनी भासी हो ।
त्यागी अन्य समस्त वस्तु में
अहम् बुद्धि दुखदासी हो ।
धन-धन जैनी साधु अबाधित …
जिन अशुभोपयोग की परिणति
सत्ता सहित विनाशी हो।
होय कदाच शुभोपयोग तो
तहँ भी रहत उदासी हो।
छेदत जे अनादि दु:खदायक
दुविधि बंध की फाँसी हो।
मोह क्षोभ रहित जिन परिणति
विमल मयंक कला सी हो।
धन धन जैनी साधु अबाधित…
विषय चाह दव दाह बुझावन
साम्य सुधारस रासी हो ।
भागचंद ज्ञानानंदी पद
साधत सदा हुलासी हो।
श्री भागचंद जी कृत