ढलता सूरज, संध्या समय का, मानव से कह गया
पुण्य तेरा नरजन्म के संग बह गया ।।टेक।।
बालपन जब भीत निकला, युवन चढ़ता रे,
वृद्धपन अब शीघ्र आया, जीवन सड़ता रे,
इस अंधेरी, गली का मग तंग रह गया ।।1।।
देह के पीछे पड़ा रे,कब तक संग रहे,
मिट्टी में आखिर मिलेगी, विपत्ति अब क्यों सहे,
आत्मा की, महिमा सुनकर दंग रह गया ।।2।।
मोक्ष पद में कदम रख ले, जीवन बीत चला,
स्वानुभूति प्राप्त करना, चेतन की एक कला,
भव भ्रमण का, काल घटकर अंश रह गया ।।3।।