देव वंदना
सुध्यान में लवलीन हो जब, घातिया चारों हने।
सर्वज्ञ बोध विरागता को, पा लिया तब आपने।
उपदेश दे हितकर अनेकों, भव्य निज सम कर लिये।
रविज्ञान किरण प्रकाश डालो, वीर! मेरे भी हिये।।
शास्त्र वंदना
स्याद्वाद, नय, षट् द्रव्य, गुण, पर्याय और प्रमाण का।
जड़कर्म चेतन बंध का, अरु कर्म के अवसान का।
कहकर स्वरूप यथार्थ जग का, जो किया उपकार है।
उसके लिये जिनवाणी माँ को, वंदना शत बार है।।
गुरु वंदना
निसंग हैं जो वायुसम, निर्लेप हैं आकाश से।
निज आत्म में ही विहरते, जीवन न पर की आस से।।
जिनके निकट सिंहादि पशु भी, भूल जाते क्रूरता।
उन दिव्य गुरुओं की अहो! कैसी अलौकिक शूरता।।
Singer: @Deshna