देव और मानवों में चर्चा | dev aur manavo me charcha

देव और मानवों में चर्चा ये चल पड़ी,
कौन पालकी का हकदार रे… कौन पालकी का हकदार रे॥ टेक॥

दिव्य शक्ति के धारी हम हैं, पालकी लेकर आये हम हैं।
सदा निरोगी यौवनमय तन, गगन विहारी यह वैक्रिय तन।
पहले हाथ लगायेंगे, पालकी के हम हकदार रे ।।1।।

यह तन तो जड़ पुद्गल का है, इसमें भी क्षण-भङ्गुरता है।
दिव्य-शक्तियाँ भी पुद्गल, की इनमें शक्ति नहीं आतम की।
करो न अब तकरार रे… पालकी के हम हकदार रे ।।2।।

वस्त्राभूषण हम ले आयें, पन्द्रह मास रतन बरसायें।
पञ्च कल्याणक महामहोत्सव, भूतल पर आ हमीं मनायें।।
न्याय से करो विचार रे, पालकी के हम हकदार रे ।।3।।

जड़ रत्नों की क्या है महिमा, यह तो तीर्थंकर की गरिमा।
पुण्य उदय से ही तुम आओ, क्यों न अन्य का उत्सव मनाओ।।
मन में करो विचार रे, पालकी के हम हकदार रे ।।4।।

समवशरण भी हम ही बनायें, दिव्यध्वनि का योग बनायें।
मोक्ष कल्याणक में भी आयें, पहले पालकी क्यों न उठायें।
क्यों नहिं करो विचार रे, पालकी के हम हकदार रे ।।5।।

भव्यजीव के पुण्य उदय से, तीर्थङ्कर का वचन योग है।
क्या तीर्थङ्कर सम हो सकते, क्या संयम धारण कर सकते।।
अतः नहीं हकदार रे… पालकी के हम हकदार रे ।।6।।

धन्य-धन्य यह मानव जीवन, संयम धारण कर सकते नर।
हे मानव सुर वैभव ले लो, क्षणभर को मानव तन दे दो।।
तुम सच्चे हकदार हो… पालकी के तुम हकदार हो ।।7।।

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