देखो तो दिखाई देता है जहाँ सहज ही आनन्द झरता है।
हम उस ज्ञान के धारी हैं-२ जहाँ जगत् प्रकाशित होता है ॥टेक॥
व्यवहार में जब जीव जगता है तो निश्चय से सो जाता है-२॥
जो जगता है परमारथ में संसार सभी कट जाता है-२ ॥
जन-जन के लिए जिनवाणी माँ, अमृत सा पेय पिलाती है।
हम उस ज्ञान के धारी हैं-2 जहाँ जगत् प्रकाशित होता है ॥१॥
पर्याय बिना ना द्रव्य कोई, ना द्रव्य बिना पर्याय रहे-२
पर्याय झुके निज धाम लखो, सुख वीर्य सदा झरता ही रहे-२॥
ज्ञेयों से लिया कुछ नहीं हमने, ज्ञेयों को तो हम जानते हैं।
हम उस ज्ञान के धारी हैं-२ जहाँ जगत् प्रकाशित होता है ॥२॥
निर्मम से मिली साम्यदृष्टि, शुद्धातम को पूजा हमने-२
हैं अन्य अन्य पर द्रव्य सभी उपयोग को भी जाना हमने-२ ॥
सिर्फ हम ही नहीं सारे जिनवर, अनन्त जिनागम कहता है।
हम उस ज्ञान के धारी हैं-२ जहाँ जगत् प्रकाशित होता है ॥३॥