दशलक्षण महा सुखकार | Daslakshan MahaSukhkaar

(तर्ज : जैसो समकित…)
दशलक्षण महा सुखकार,
पूजो भक्ति सौं, धारो शक्ति सौं।।टेक।।
वस्तु स्वरूप समझकर भाई, अन्तर्दृष्टि करना।
तत्त्व भावना भाते-भाते, क्रोधादिक परिहरना ।।दशलक्षण.।।1।।
अन्य न कोई सुख-दुःख दाता, परम सत्य है भाई।
मिथ्यात्वादि क्लेश के कारण, संयमादि सुखदाई ।।दशलक्षण ।।2।।
आग समझकर रागादिक को, दूरहि से तुम त्यागो।
परभावों से वृत्ति समेटो, ब्रह्म भाव में पागो।।दशलक्षण. ।।3।।
मुक्ति का सोपान यही है, तत्त्वज्ञान से जानो।
मुक्त स्वरूप सदा शुद्धातम, आज सहज पहिचानो। दशलक्षण. ।।4।।

रचयिता: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

Source: Bhakti Bhavna

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