दर्शन स्तुति | Darshan stuti । लखी-लखी प्रभु । Lakhi Lakhi Prabhu Veetrag

लखी-लखी प्रभु वीतराग छवि, आज मैं जिनेन्द्रा।
भूली-भूली निज निधि पाई, आज मैं जिनेन्द्रा।।टेक।।

तुम्हें देखकर अब तो मैंने, निज को निज से जान के।
निज का शाश्वत वैभव पाया, आपा स्वयं पिछान के।।
पर आश्रय के सब दुख विनशे, आज हो जिनेन्द्रा।।लखी…।।१।।

आतम सुखमय सुख का कारण, आज स्वयं ही देखा है।
आतम के आश्रय से जिनवर, मिटे करम की रेखा है।।
अपने में स्थिरता पाऊँ, चाहूँ यही जिनेन्द्रा।।लखी…।।२।।

तुझ सी ही प्रभुता है मुझ में, नहीं मुझे कुछ करना है।
‘है’ की मात्रा प्रतीति अनुभव, थिरता से शिव होना है।।
सब संकल्प-विकल्परहित हो, निज ध्याऊँ जिनेन्द्रा।।लखी…।।३।।

Artist: आ. ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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