छोटे-छोटे मुनिवर, हो गये निहाल।
निज परिणति का, देखो तो कमाल।।
आठ वर्ष में ही दीक्षा धार।
नवें वर्ष पाया ज्ञान तत्काल।। निज परिणति…।।१।।
पंच महाव्रत धारे अणुव्रत धार।
संयम के रथ पर हो गये सवार।।
सम्यक्त्वाचरण पाया आ गया स्वकाल। निज परिणति… ।।२।।
चार घातिया विनाश हुये सर्वज्ञ।
अपने में रहकर हुए आत्मज्ञ।।
अघातिया विनाश बने त्रिभुवन भाल। निज परिणति… ।।३।।