चित्स्वरूप महावीर, तुम्हीं ने दरशाया।
देखत हुआ आनन्द, दु:ख सब विनसाया।
देव अनंत चतुष्टय रूप, गुरुवर का निर्ग्रन्थ स्वरूप।
वस्तु स्वभाव सु, धर्म तुम्हीं ने बतलाया।।(1)
तत्त्वप्रयोजनभूत बताये,हेय और आदेय सु गाये।
स्व-पर भेदविज्ञान तुम्हीं ने दरशाया।।(2)
निश्चय सिद्ध समान निजातम,परम पारिणामिक परमातम्।
आश्रय करने योग्य तुम्हीं ने दरशाया।।(3)
विषयों से निरपेक्ष सहज सुख, निज में ही हो प्राप्त परम सुख।
ध्येय रूप शुद्धात्म तुम्हीं ने दरशाया।।(4)
ज्ञान होय निरपेक्ष ज्ञेय से, निज प्रभुता निरपेक्ष है पर से।
सहज तत्त्व परिपूर्ण तुम्हीं ने दरशाया।।(5)
धन्य हुआ कृतकृत्य जिनेश्वर, तुम सम ही हूँ मैं परमेश्वर।
सम्यक् मुक्तिमार्ग तुम्हीं ने दरशाया।।(6)
भक्ति सहित प्रभुवर सिर नाऊँ, हर्ष विभोर हुआ गुण गाऊँ।
परम ब्रह्मचर्य नाथ तुम्हीं ने दरशाया।।(7)
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’