चेतो चेतन निज में आओ-२
अन्तर आत्मा बुला रही है-२॥ टेक॥
जग में अपना कोई नहीं है, तू तो ज्ञानानंदमयी है -२
एक बार अपने में आजा-२ अपनी खबर क्यों भुला दयी है-२॥
चेतो चेतन निज… ॥१॥
तन धन-जन ये कुछ नहीं तेरे, मोह में पड़कर कहता है मेरे-२
जिनवाणी को उर में भर दे - २ समता में तुझे सुला रही है - २॥
चेतो चेतन निज…॥२॥
निश्चय सेतु सिद्ध प्रभु सम, कर्मोदय से धारे ये तन - २
स्यावाद के इस झूले में - २ माँ जिनवाणी झुला रही है - २ ॥
चेतो चेतन निज… ॥३॥