चेतन तू तिहुँँकाल अकेला | chetan tu tihu kaal akela

चेतन तू तिहुँँकाल अकेला।।टेक।।
नदी नाव संजोग मिलैं ज्यों, त्यों कटुँँब का मेला।।१।।

यह संसार असार रूप सब, ज्यों पटपेखन खेला।
सुख सम्पति शरीर जल बुद बुद, विनशत नाहीं बेला।।२।।

मोह मगन आतम गुन भूलत, परि तोहि गल जेला।
मैं मैं करत चहूँ गति डोलत, बोलत जैसे छेला।।३।।

कहत ‘बनारसी’ मिथ्यामत तज, होइ सुगुरु का चेला।
तास वचन परतीत आन जिय, होइ सहज सुलझेला।।४।।

-कविवर पण्डित बनारसीदास जी

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