चेतन निज भ्रमतें भ्रमत रहै । Chetan Nij Bhramte Bhramat Rahe

चेतन निज भ्रमतें भ्रमत रहै

(राग दादरा )

चेतन निज भ्रम भ्रमत रहै । । टेक ॥।
आप अभंग तथापि अंगके, संग महा दुखपुंज वहै ।
लोहपिंड संगति पावक ज्यों, दुर्धर घन की चोट सहै ।। १ ।।

नामकर्म के उदय प्राप्त कर, नरकादिक परजाय धरै ।
तामें मान अपनपौ विरथा, जन्म जरा मृत्यु पाय डरै ।। २ ।।

कर्ता होय रागरुष ठानै परको साक्षी रहत न यहैं
व्याप्यव्यापकभाव बिना किमि, परको करता होत न यहै ।। ३ ।।

जब भ्रमनींद त्याग निजमें निज, हित हेत सम्हारत है
वीतराग सर्वज्ञ होत तब, ‘भागचन्द’ हितसीख कहै || ४ ||

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन