चरणों में आये हैं, माँ अपनी शरण दे दो।
भटके हैं राहों में, हमें ज्ञान किरण दे दो ॥टेक।।
सुख की अभिलाषा में, संसार संवारा है।
पर को अपना माना यही दोष हमारा है।
शुद्धातम हो अपना, अज्ञान तिमिर हर लो।।1।।
कर्मों के सताये हैं, भव-भव के रूलाये हैं।
चौरासी के चक्कर में, कई जन्म गंवाये हैं।
भव बन्धन काट सके, वह शक्ति हमें दे दो.।।2।।
तोड़ा जग से नाता तुम्हें सब कुछ माना है।
सर्वज्ञ हितेषी हो, हमने पहचाना है।
हम दास हैं चरणों के, यह प्रीति अमर कर दो॥3॥