चैतन्य के दर्पण में, आनंद के आलय में।
बस ज्ञान ही बस ज्ञान है, कोई कैसे बतलाए।।टेक
निज ज्ञान में बस ज्ञान है, ज्यों सूर्य रश्मि खान,
उपयोग में उपयोग है, क्रोधादि से दरम्यान ।
इस भेद विज्ञान से, तुझे निर्णय करना है,
अपनी अनुभूति में, दिव्य दर्शन हो जाए ।।(1)
निज ज्ञान में पर ज्ञेय की, दुर्गंध है कहाँ,
निज ज्ञान की सुगंध में, ज्ञानी नहा रहा ।
अभिनंदन अभिवादन, अपने द्वारा अपना,
अपने ही हाथों से, स्वयंवर हो जाए ।।(2)
जिस ज्ञान के निज ज्ञान को, निज ज्ञान न जाना,
कैसे कहे ज्ञानी उसे, परसन्मुख बेगाना।
ज्ञेय के जानने में भी, बस ज्ञान प्रसिद्ध हुआ,
अपनी निधि अपने में, किसी को न मिल पाए।।(3)
Singer: At. @Pranjal