भोजन संबंधी ज्ञानी के विचार | Bhojan Sambandhi Gyani ke Vichar

भोजन संबंधी ज्ञानी के विचार - सहजपाठ संग्रह (446)

भोजन स्वरूप नहिं मेरा, ये पुद्गल पिण्ड निवेरा ।
इससे मम भिन्न चतुष्टय, हूँ निज में पूर्ण सुखी मैं ॥1

अब मैं निज भाव चितारा, इसका मैं जाननहारा ।
लेने की जरूरत नाहीं, इसके बिन पूर्ण सुखी मैं ॥2

ज्यों श्वान अस्थि को चावे, अति ही आनंद मनावे ।
पर है विपाक दुःखदायी, अन्तः कपोल फाटन तैं ॥3

त्यों भोजन में सुख भासे, इसके साधन में राँचे ।
पर इसमें बंध अशुभ है, भारी हो दुःख उदय तैं ॥4

इसमें नहीं सुख कदाचित्, सुख तो निज की ही परिणति ।
इसकी रुचि में तो तृष्णा, तृष्णा बिन पूर्ण सुखी मैं ॥5

भोजन से तृप्ति न होवे, सद्ज्ञान सुधा सब खोवे ।
मैं ज्ञान स्वरूप सम्हारूँ, जिससे हूँ पूर्ण सुखी मैं ॥6

हैं धन्य महामुनि ज्ञानी, जो ध्यान धरै जिनवाणी ।
वाणी-माँ-अंक में सोवे, सुख पायो उन निज ही में ॥7

भोजन को नहिं अभिलाखे, निज ज्ञान सुधा रस चाखे ।
आश्रय निज भाव का लेते, वे रहित होंय इच्छा तैं ॥8

किंचित् विकल्प यदि आवे, अरु नीरस भी नहिं पावे ।
तो भी समभाव विचारें, वे सदा सुखी समता तें ॥9

उनका अनुकरण करूँ मैं, उन सम ध्यान धरूँ मैं ।
भोजन का राग न आवे, बिन राग हूँ पूर्ण सुखी मैं ॥10


Lyrics - Baal Br. Shree Ravindra Ji ‘Aatman’
Singer – Vandana Parakh, Rajnandgaon
Chorus – Anamika Bardiya
Studio - Vilas Digital Recording Studio, Rajnandgaon

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