भोगे तो भोग क्या हैं, भोगों ने भोगा हमको ।
इन भोग ही के कारण, कर्मों ने घेरा हमको ॥ टेका।
हम सोचते बड़ा सुख धन धाम मान जन का ।
सुख का बहाना करके छोड़ेगा पुण्य हमको ॥१॥
हम सोचते बड़े हैं इनसे उमर बड़ी है ।
कर कर बड़ा बड़ा ये खा लेगा काल हमको ॥२॥
जिस तन को सजाते हैं इतराते रूप लखकर ।
सेवायें करा कर ये छोड़ेगा देह हमको ॥३॥
पितु मात भ्रात नारी सुत संपदा भि सारी ।
मोही बना बना सब छोड़ेगें कभी हमको ॥४॥
तन जन चमन खजाने साथी न हों ‘मनोहर’ ।
इक धर्म ही हितू जो होगा सहाय हमको ॥५॥
रचयिता: क्षु. मनोहर लाल जी वर्णी