भेद्विज्ञान | Bhed vigyan

चेतन काया निकले साथ,
चार गति से धक्का खाते।
सोना-जगना देह का काम,
खाना-पीना देह का काम।
हँसना-रोना देह का काम,
चलना-फिरना देह का काम |।
चेतन तो बस जानता,
काया कुछ न जानती |
चेतन करता अपना काम,
काया करती अपना काम |।
चेतन ही हूँ आतमराम,
ज्ञाता दृष्टा आतमराम |।

Artist: बाल ब्र. श्री सुमत प्रकाश जी
Source: बाल काव्य तरंगिणी