भावों में सरलता रहती है, जहाँ प्रेम की सरिता बहती है।
हम उस धर्म के पालक हैं, जहाँ सत्य अहिंसा रहती है।।टेक।।
जो राग में मूळे तनते हैं, जड़ भोगों में रीझ मचलते हैं।
वे भूलते हैं निज को भाई, जो पाप के साँचे ढलते हैं।।१।।
उपकार उन्हें माँ जिन-वाणी, जहाँ ज्ञान-कथायें कहती हैं।
जो पर के प्राण दुखाते हैं, वे आप सताये जाते हैं।।२।।
अधिकारी वे हैं शिवसुख के, जो आतम ध्यान लगाते हैं।
‘सौभाग्य’ सफल कर नर जीवन, यह आय ढलती रहती है।।३।।
Artist: श्री सौभाग्यमल जी