भावना की चुनरी ओढ़ के
जिन मंदिर में आवजो रे, जिनवाणी को सुनजो रे।
आवजो आवजो आवजो रे, सारी नगरी बुलावजो रे ॥
श्रद्धा के रंग से रंगलो चुनरिया, ज्ञान गुणों से जड़ी।
शांत एक ध्रुव ज्ञायक प्रभुकी महिमा है जगमें बड़ी ।॥
हो लेके भक्ति अपार आप आवजो रे ।
आप आवजो आवजो आवजो रे ।।
हो लेके हर्ष अपार आप आवजो रे ।
आप आवजो आवजो आवजो रे ।।
जिनमंदिर में आवजो रे, जिनवाणी को सुनजो रे ।
ज्ञायक प्रभुकी महिमा सुनते, ज्ञायकमय जीवन होवे।
निज ज्ञायक में रम जाऊँ तो, आनंदमय जीवन होवे ॥
हो लेके आनंद अपार आप आवजो रे ।
आप आवजो आवजो आवजो रे ।।
हो लेके हर्ष अपार आप आवजो रे ।
आप आवजो आवजो आवजो रे ।।
जिनमंदिर में आवजो रे, जिनवाणी को सुनजो रे ।
वीतरागता उर में घारी, ज्ञान पीयूष पिया ।
जग को मुक्ति मार्ग बताया, जगका कल्याण किया ॥
हो लेके श्रद्धा अपार आप आवजो रे ।
आप आवजो आवजो आवजो रे ।।
हो लेके भक्ति अपार आप आवजो रे ।
आप आवजो आवजो आवजो रे ।।
जिनमंदिर में आवजो रे, जिनवाणी को सुनजो रे ।