भरतजी घर में ही वैरागी | Bharatji ghar me hi vairagi

भरतजी घर में ही वैरागी, वे तो अन धन सब के त्यागी || टेक ||

कोड़ अठारह तुरंग हैं जाके, कोड़ चौरासी पागी |
लाख चौरासी गजरथ सोहे, तो भी भये नहिं रागी || १ ||

तीन करोड़ गोकुल घर सौहैं, एक करोड़ हल साजै |
नव निधि रतन चौदह घर जाके, मन वांछा सब भागी || २ ||

चार करोड़ मण नाज उठै नित, लोण लाख दश लागै |
कोड़ थाल कंचन मणि सोहैं, नाहीं भया सोई रागी || ३ ||

ज्यों जल बीच कमल अन्तःपुर नहिं भये वे रागी |
भविजन होय सोइ उर धारो, सोई पुरुष बड़भागी || ४ ||

2 Likes