भक्ति से जिनवर के दर्शन करेंगे ।
अपना प्रभु अपने में देखेंगे हम ।।
गुरुवर की उत्तम संगति करेंगे ।
अपना गुरु अपने में देखेंगे हम ।।
जिनवाणी साँची माता हमारी ।
पढ़ेंगे और सबको पढ़ायेंगे हम ।।
परम पुरुष जो हुए अलौकिक ।
आदर्श उनको बनायेंगे हम ।।
अन्तर्मुख होकर अनुभव करेंगे ।
अपने को आत्मा देखेंगे हम ।।
परभावों से न्यारा सहज अकर्ता ।
अपने को ज्ञाता देखेंगे हम ।।
जन्मते-मरते, मिलते बिछड़ते ।
देहादि को न्यारा देखेंगे हम ।।
मोहादि दुर्भाव दु:ख के हैं कारण ।
स्वाश्रय से इनको छोड़ेंगे हम ।।
परमार्थ रत्नत्रय शिवसुख का कारण ।
अन्तर में स्वाश्रय से पायेंगे हम ।।
अवसर न चूकें पुरुषार्थ करके ।
मुक्तिपुरी को जायेंगे हम ।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी
Singer - @Atmarthy_Ayushi_Jain