भाई ! अन्तर उज्जवल करना रे |
कपट कृपान तजै नहिं तबलौं, करनी काज न सरना रे || टेक ||
जप तप तीरथ यज्ञ व्रतादिक, आगम अर्थ उचरना रे |
विषय-कषाय कीच नहिं धोयो, यों ही पचि पचि मरना रे || १ ||
बाहिर भेष क्रिया उर शुचि सों, किये पार उतरना रे |
नाहीं है सब लोक रंजना, ऐसे वेदन वरना रे || २ ||
कामादिक मन सौं मन मैला, भजन किये क्या तिरना रे |
‘भूधर’ नीलवसन पर कैसें, केसर रंग उछरना रे || ३ ||
Artist : कविवर पं. भूधरदास जी