बारह भावना
तर्ज:- मैं अपूर्व कार्य करूंगा
आतम है मेरा शुद्ध-बुद्ध उस ही को ध्याऊँगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा। टेक।।
संसार में पयार्य अनन्तों धारण कर ली है।
लेकिन दो समय भी कोई न रुकी हैं।
आतम ही हैं नित्य बस उस ही को ध्याऊँगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा। ।।1।।
देह के रिश्तेदार बहुत ही हैं बन रहे ।
लेकिन दुख में कोई भी ना काम आ रहे।
निज आतम हैं शरण निज शरणार्थी बनूंगा।
जान लिया संसार बारह भावना भाऊंगा ||2||
संसार सारा देख है सुख नहीं कुछ भी ।
अपने घर से ज्यादा सुख नहीं कहीं भी।
अब तो नित अपने निज घर मे ही रहूँगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा।।3।।
मित्र शत्रु तात् माता रिश्तेदार है।
मुझमें नहीं कोई यह सब तो व्यवहार हैं।
एकाकी हूँ मैं सदा ही एकाकी रहूँगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा ।।4।।
मोह उदय के कारण सबको अपना ही माने ।
जब देह ही अपनी नही तो कौन कहाँ ठाने।
सबसे हूं में भिन्न अब तो भिन्न रहूँगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा ।।5।।
सौ बार सफाई करे फिर भी मलिन ही रहे।
ऐसे अशुचि देह में हम कैसे अब रहें।
परम पवित्र आत्मा अब उसमें रहूँगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा ।। 6 ।।
अँधेरे खाली घर हो तो चोर आते हैं।
आतम में ना रहे मूढ़ तो कर्म आते हैं।
बाहर कभी न जाकर अब निज घर में रहूंगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा ।।7।।
घर में रहे कर द्वार बंद तो चोर न आवें ।
अन्तर मै रह निज ध्यावे तो कर्म न आवें ।
कर्मागम के द्वार को अब बंद करूंगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा।।8।।
पानी भरा निज नाव दोनों हाथ उलींचते ।
बाहर करे सब कर्म निज आतम को सींचते ।
कर बंद आस्रव द्वार को निज कर्म खिरूंगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा ।।9।।
कोई न कर्ता लोक का अनादि से है ये ।
जीवादि षट् द्रव्य भी इसमे सदा रहे।
प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र मैं भी स्वतंत्र रहूँगा।
जान लिया संसार बारह भावना जाऊँगा।।10।।
बोधि लक्षण जीव का ये सबसे है महान।
‘सम्भव’ है निज कार्य इसको दुर्लभ न तू जान ।।
सच्चे सुख को पाने का पुरुषार्थ करूंगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा ।।11।।
धरम करता सब जगत पर न धर्म को जाने।
जाने बिना निज धर्म को वे धर्म को चाहे
निज आत्म को ध्याकर सच्चा धर्म करूंगा।
जान लिया संसार बारह भावन भाऊँगा।।12।।
~ पं. सम्भव जैन शास्त्री, श्योपुर