बढ़े चलो, बढ़े चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।
गुरु संगति में बढ़े चलो, हो असंग तुम बढ़े चलो।।
सम्यक् श्रद्धा सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र शिवषथ जान।
हर्षित होकर बढ़े चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।।
तत्त्वों का सम्यक् निर्णय कर, भेदज्ञान आतम अनुभव हो ।
पुरुषारथ से बढ़े चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।।
आगम से सम्यक् ज्ञान, पढ़ो पढ़ावो हो कल्याण।
भक्ति भाव से बढ़े चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।।
भाओ नित वैराग्य भावना, गुरु साक्षी में चारित्र धारना।
मुक्ति पथ पर बढ़े चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।।
परीषहों से नहीं घबराना, क्षण-क्षण भाव विशुद्धि बढ़ाना।
अंतर में ही बढ़े चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।।
आतम श्रद्धा आतम ज्ञान, आत्म लीनता चारित्र जान।
ज्ञान सिंधु में रमे चलो, प्रभु के पथ पर बढ़े चलो।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी