1
क्रोध मान अरु माया लोभ, त्यागे से जीवन की शोभा।
दर्श ज्ञान चरित तप भाई, आराधन है शिव सुखदाई ।।
चार कषायों को त्यागो, आराधन में चित पागो।
तभी तुम्हारा दुख मिटेगा, तभी निराकुल सुख मिलेगा।।
2
हिंसा छोड़ो झूठ छोड़ो, चोरी कुशील परिग्रह छोड़ो।
जग विषयों से मुख को मोड़ो, मुक्तिमार्ग से परिणति जोड़ो ।।
छोड़ो छोड़ो पाँचों पाप, करते यही महा संताप।
तब ही तो होगा कल्याण, कहें महावीर भगवान।।
3
छोड़ो छोड़ो रे कषाय, महा दुख उपजाये।
श्री गुरु समझाये, जिनवाणी बतलाये।।
क्रोध छोड़ो मान छोड़ो, माया छोड़ो लोभ छोड़ो।
हास्य रति अरति छोड़ो शोक भय अरु ग्लानि छोड़ो ।।
विषयों की वांछा को छोड़ो, ईर्ष्या छोड़ो मोह छोड़ो ।
करो तत्त्व अभ्यास, अपना सुख है अपने पास ।।
तुम हो शुद्ध चिद्रूप, साधो-साधो अपना रूप।
पाओ मुक्ति साम्राज्य, कहें श्री जिनराज।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी