और ठौर क्यों हेरत प्यारा | Aur thor kyo herat pyara

और ठौर क्यों हेरत प्यारा, तेरे हि घट में जाननहारा |
चलन हलन थल वास एकता, जात्यान्तर तैं न्यारा न्यारा || टेक ||

मोह उदय रागी-द्वेषी ह्वै, क्रोधादिक का सरजन हारा |
भ्रमत फिरत चारौं गति भीतर, जनम-मरन भोगत दुख भारा || १ ||

गुरु उपदेश लखै पद आपा, तबहिं विभाव करै परिहारा |
ह्वै एकाकी ‘बुधजन’ निश्चल, पावै शिवपुर सुखद अपारा || २ ||

Artist : कविवर पं. बुधजन जी

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