और अबै न कुदेव सुहावै। Aur Abai Na Kudev Suhave

और अबै न कुदेव सुहावे, जिन थाके चरनन रति जोरी। टेक ॥

कामकोहवश गहैं अशन असि, अंक निशंक धेरै तिय गोरी ।
औरनके किम भाव सुधारें, आप कुभाव - भारधर-धोरी ।। १ ।।

तुम विनमोह अकोहछोहविन, छके शांत रस पीय कटोरी ।
तुम तज सेय अमेय भरी जो, जानत हो विपदा सब मोरी || २ ||

तुम तज तिनै भजै शठ जो सो दाख न चाखत खात निमोरी ।
हे जगतार उधार दौलको निकट बिकट भवजलधि हिलोरी ॥३॥

१. अंक=गोद, २.धोरी= मुखिया, प्रधान
३.कोह = क्रोध ४. छोह = क्षोभ ।

भजन का अर्थ:

हे जिनेन्द्र ! मैं आपके चरणों की शरण में आ गया हूँ, अब मुझे अन्य कोई देव नहीं भाते, नहीं सुहाते, अच्छे नहीं लगते।

काम और क्रोध के वशीभूत होकर जो भोगों को स्वीकार करते हैं, शरीर पर अस्त्र-शस्त्र रखते हैं और अपने साथ स्त्री को रखते हैं वे औरों के क्या भाव सुधारेंगे, जो स्वयं ऐसे कुभावों/खोटे भावों का बोझ ढोनेवाले हैं, कुभावों के स्वामी हैं।

आपने मोह का नाश कर दिया है, आप क्रोध और क्षोभ से रहित हैं और शांति-रस का पान करके तृप्त हैं। आपकी भक्ति को छोड़कर हमने अपरिमित विपदाओं को सहा है, उनका उपार्जन किया है, यह आप सब जानते हैं।

आपको छोड़कर जो दुष्ट अन्य की भक्ति करता है, वह (मीठी) दाख को छोड़कर नीम की कड़वी निमोरी खाने के समान है। दौलतराम जी प्रार्थना करते हैं हे जगत से पार उतारनेवाले, इस भव- समुद्र की विकट लहरों से हमें बाहर - निकालकर हमारा उद्धार करो, अपने निकट लो, अर्थात् हमें भी मोक्ष की प्राप्ति हो।

भजन सोर्स: दौलत विलास
अर्थ सोर्स: दौलत भजन सौरभ
रचयिता: पंडित श्री दौलतराम जी