तुम चिरंतन, मैं लघुक्षण
लक्ष वंदन, कोटि वंदन !
तुम चिरंतन
मैं लघुक्षण
जागरण तुम
मैं सुषुप्ति
दिव्यतम आलोक हो प्रभु
मैं तमिस्रा हूँ अमा की
क्षीण अन्तर, क्षीण तन मन
शोध तुम
प्रतिशोध रे! मैं
क्षुद्र-बिन्दु
विराट हो तुम
अज्ञ में पामर अधमतम
सर्व जग के विज्ञ हो तुम
देव! मैं विक्षिप्त उन्मन्
चेतना के
एक शाश्वत
मधु मदिर
उच्छ्वास ही हो
पूर्ण हो, पर अज्ञ को तो
एक लघु प्रतिभास ही हो
दिव्य कांचन, मैं अकिंचन
व्याधि मैं
उपचार अनुपम
नाशमैं
अविनाश हो रे!
पार तुम, मँझधार हूँ मैं
नाव में, पतवार हो रे !
मैं समय, तुम सार अर्हन् !
Artist: Babu Shri Yugal ‘Kishore’ Ji
Source: Chaitanya Vatika