अपने में सावधान | Apne me Savdhan

[सहज पाठ संग्रह – 16]

अपने में सावधान

सावधान रहना अपने में, सावधान रहना।
सावधान रहना प्रतिक्षण ही, सावधान रहना।। टेक ।।

पर्यायें बदलें क्षण-क्षण में, मत इनमें बहना।
शुद्ध चिदानन्द रूप भूल, इनको मत निज कहना ।। 1 ।।

अरे ! विकल्पों जैसा भी, कुछ कार्य दिखाई देवे।
होता हुआ स्वतंत्र समझकर, ज्ञाता ही रहना।। 2।।

विषयों में कुछ सुख सा दीखे, भेदज्ञान उर धरना।
हड्डी में से स्वाद समझ, मत कुत्ते सम मरना ।। 3।।

ज्ञेयों में से ज्ञान न आवे, सहज निस्पृही ही रहना।
व्यर्थ राग में नहीं अटकना, ध्रुव दृष्टि धरना।।4।।

पुण्योदय में भूल न जाना, जग ख्याति से बचना।
पर परिचय से उदासीन रह, निज साधन करना ।। 5।।

परम पुरुष आदर्श बनाओ, गुण ग्रहण करना।
दोषों का अनुकरण न करना, संयम में चित धरना ।। 6।।

पर अवलम्बन नहीं चाहना, दैन्य नहीं लाना।
धीर-वीर हो सहज पने, घोर परीषह सहना।। 7।।

नहीं लजाना धर्म कभी, मर्यादा नहीं खोना ।
चाहे प्राण भले ही जावें, निज में दृढ़ रहना ।।৪।।

उत्तम रत्नत्रय पथ पाया, आगे बढ़ते ही जाना।
अहो ! भावना निर्मल रखना, छल ग्रहण नहीं करना ।।९।।

अहो पूर्ण निष्कर्म अवस्था, परम साध्य तेरा।
परम तत्त्व का आराधन कर, सहज साध्य है पाना।।10।।

ब्रह्मचर्य है रत्न अनूपम, खेल-खिलौना ना।
महाभाग्य से पाया, नव बाढ़ों से रक्षा करना।। 11 ।।

अतीचार लगने नहीं पावे, ब्रह्म भावना भाना।
सुविधाओं में रीझ-रीझ, आलस्य नहीं करना ।।12।।

जितनी शक्ति हो उतना पालन निश्चय करना।
शक्ति न दीखे तो भी श्रद्धा, सम्यक् ही धरना ।। 13।।

नहीं लोपना मार्ग कभी, अवर्णवाद नहीं करना।
दोष लगें तो प्रायश्चित से, भाव शुद्ध करना।। 14।।

होना नहीं भयभीत प्रलोभन में भी नहीं फँसना।
जग की बातों में आकर, निज संयम नहीं खोना ।।15 ।।

चूक न जाना अवसर, अविरल शिवपथ में बढ़ना।
स्वानुभूतिमय पथ पर चलकर, अक्षय पद पाना।। 16।।

Artist - ब्र० श्री रवीन्द्र जी आत्मन्

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