अपना स्वरूप | Apna swarup

रे जीव ! तू अपना स्वरूप देख तो अहा।
दृग-ज्ञान-सुख-वीर्य का भण्डार है भरा ।।टेक।।

नहिं जन्मता मरता नहीं, शाश्वत प्रभु कहा।
उत्पाद व्यय होते हुये भी ध्रौव्य ही रहा ।।१।।

पर से नहीं लेता नहीं देता तनिक पर को।
निरपेक्ष है पर से स्वयं में पूर्ण ही अहा ॥२॥

कर्ता नहीं भोक्ता नहीं स्वामी नहीं पर का।
अत्यंताभाव रूप से ज्ञायक ही प्रभु सदा ।।३।।

पर को नहीं मेरी कभी मुझको नहीं पर की।
जरूरत पड़े सब परिणमन स्वतंत्र ही अहा ।।४।।

पर दृष्टि झूठी छोड़कर निज दृष्टि तू करे।।
निज में ही मग्न होय तो आनन्द हो महा ॥५॥

बस मुक्तिमार्ग है यही निज दृष्टि अनुभवन।।
निज में ही होवे लीनता शिव पद स्वयं लहा।।६।।

आत्मन् कहूँ महिमा कहाँ तक आत्म भाव की।
जिससे बने परमात्मा शुद्धात्म वह कहा ॥७॥

Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

6 Likes