अंतर में सिद्धों की महिमा समाई , बधाई हो बधाई चेतन तुमको बधाई
परमात्म अपना देता दिखाई बधाई हो बधाई चेतन तुमको बधाई
बधाई हो बधाई…
- अशरीरी सिद्धों के जैसा अपना ज्ञायक रूप है वैसा
लोकालोक झलकते फिर भी , चेतन तो जैसा का तैसा
संयोगों से अब दृष्टि हटाई , बधाई हो बधाई…
2.कहने को सिद्धालय वासी किंतु आप तो ज्ञान निवासी
राग द्वेष बिन निर्विकल्प, ज्ञान दृष्टि से हो सविकल्प
दृष्टि अनेकांत की उपजाई , बधाई हो बधाई…
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एक सिद्ध में सिद्ध अनंत, गुण पर्याय अनंतानंत
सबकी सत्ता न्यारी न्यारी, प्रगतायो अवगाहन भारी
कण कण की स्वाधीनता चित्त भाई , बधाई हो बधाई … -
अंतिम पौरुष मोक्ष को साधा , भव बंधन की मिट गई बाधा
नयातीत पद तुमने पाया , नय विकल्प का भेद मिटाया
ज्ञान मात्र सत्ता अब अनुभव में आई, बधाई हो बधाई…
5.अगुरूलघु गुण को प्रगटाया, सिद्ध सुकुल प्रभूवर ने पाया
अंतर में समभाव समाया, गोत्र कर्म समूल नशाया
प्रभुता में गुरूता लघुता ना पाई, बधाई हो बधाई…
Artist: पंडित संजीव जी उस्मानपुर