अनन्त चतुष्टयवंत हुये | anant chatustay hue

अनन्त चतुष्टयवंत हुये, कैवल्य भानु उदित हुआ
प्रभु मुक्ति रमा के कंत हुऐ, अब ज्ञान कल्याणक आ गया॥

समवशरण में स्वर्णकमल पर, पदमासन विराजित हैं,
ओंकारमयी वाणी सुनने, बारह सभाएँ सुशोभित हैं,
प्रभु अतिशय महिमावंत हुए, अब ज्ञान कल्याणक आ गया,
अनंत चतुष्टय… ॥१॥

चार घातिया कर्म नाश, अरिहंत अवस्था आई है,
ओंकारध्वनि अमृत वर्षा की, मंगल घड़िया लाई हैं,
प्रभु आज श्री अरिहंत हुये, अब ज्ञान कल्याणक आ गया,
अनंत चतुष्टय… ॥२॥

भूत भविष्यत वर्तमान सब, वर्तमानवत् जान रहे,
कैवल्य कला की महिमा से, किंचित न अपना मान रहे,
केवल ज्ञानी भगवंत हुये, अब ज्ञान कल्याणक आ गया,
अनंत चतुष्टय… ॥३॥