आनन्द अवसर आज, सुरगण आये | anand avsar aaj surgan aaye

आनन्द अवसर आज, सुरगण आये नगर में;
तीर्थङ्कर युवराज, आनन्द छाया नगर में ॥

स्वर्गपुरी से सुरपति आये, सुन्दर स्वर्णकलश ले आये;
निर्मल जल से तीर्थङ्कर का मङ्गलमय शुभ न्हवन कराये।
परिणति शुद्ध बनाय भविजन ॥१॥

प्रभुजी वस्त्राभूषण धारें, चेतन को निर्वस्त्र निहारे;
एक अखण्ड अभेद त्रिकाली चेतन तन को भिन्न निहारें;
आनन्द रस बरसाय भविजन ॥२॥

पुण्य उदय है आज हमारे नगरी में जिनराज पधारे;
निशदिन प्रभु की सेवा करने भक्ति सहित सुरराज पधारे;
जीवन सफल बनाय सुरगण ॥३॥

सुरपति स्वर्गपुरी को जावें भोगों में नहीं चित ललचावें;
आनन्दघन निज शुद्धातम का रस ही परिणति में नित भावें।
भेद-विज्ञान सुहाय भविजन ॥४॥

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