ऐसे विमल भाव जब पावै
(राग काफी)
ऐसे विमल भाव जब पावै, तब हम नरभव सुफल कहावै ॥ टेक ॥।
दरशबोधमय निज आतम लखि, परद्रव्यनिको नहिं अपनावै ।
मोह - राग-रुष अहित जान तजि, झटित दूर तिनको छुटकावै ॥ १ ॥
कर्म शुभाशुभबंध उदयमें हर्ष विषाद चित नहिं ल्याये।
निज-हित-हेत विराग ज्ञान लखि, तिनसों अधिक प्रीति उपजावै ॥ २ ॥
विषय चाह तजि आत्मवीर्य सजि, दुखदायक विधिबंध खिरावै।
‘भागचन्द’ शिवसुख सब सुखमय, आकुलता बिन लखि चित चावै ॥३ ॥
रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन
Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )