अहिंसा के पथ पर जाऊँगा, ऐसा है मेरा प्रण
अंतर्मुखी बनी रहे ये परिणति हर क्षण ।
हिंसा कभी नहीं करूँगा मैं, झूठ कभी नहीं बोलूँगा मैं
जिनमार्ग पर बढ़ती रहे, ये परिणति हर क्षण । अहिंसा…
चोरी कभी नहीं करूँगा मैं, कुशील कभी नहीं सेऊँगा मैं
निष्पाप-पथ पर बनी रहे, ये परिणति हर क्षण । अहिंसा…
परिग्रहों को छोडूँगा मैं, निर्मम-भाव नित सेऊँगा मैं ।
सन्मार्ग-पथ पर बनी रहे, ये परिणति हर क्षण । अहिंसा…
पाँचों पापों को जीतूँगा मैं, मुनिराज बन वन विचरूँगा मैं
मोक्षपथ पर बनी रहे, ये परिणति हर क्षण । अहिंसा…
रचना: श्रीमती स्नेहल जैनापुरे
स्वर: सुश्री श्वेतल जैनापुरे , सुश्री काव्या जैनापुरे