अज्ञानी पाप धतूरा न बोय |
फल चाखन की बार भरै दृग, मर है मूरख रोय || टेक ||
किंचित विषयनि के सुख कारण, दुर्लभ देह न खोय |
ऐसा अवसर फिर न मिलैगा, मोह नींद मत सोय || १ ||
इस विरियां में धर्म-कल्प-तरु, सींचत स्याने लोय |
तू विष बोवन लागत तो सम, और अभागा कोय || २ ||
जे जग में दुःखदायक बेरस, इस ही के फल सोय |
यों मन ‘भूधर’ जानिकै भाई, फिर क्यों भोंदू होय || ३ ||
Artist : कविवर पं. भूधरदास जी
Singer: आदरणीय श्री मांगीलाल पं जी, कोलारस