ए रे वीर रामजीसों कहियो बात ॥ टेक ॥
लोक निंदतैं हमकों छांडी, धरम न तजियो भ्रात ॥ ए रे. ।॥ १ ॥
आप कमायो हम दुख पायो, तुम सुख हो दिनरात । ए रे. ॥ २ ॥
‘द्यानत’ सीता थिर मन कीना, मंत्र जपै अवदात ॥ ए रे .।। ३ ।।
अर्थ : रावण के घर रहने के कारण सीता जी को लोक-निंदावश घर से निर्वासित कर दिया गया। सारथि राम के आदेश के अनुसार सीता को जंगल में छोड़कर वापस आने लगा तो सीता जी ने उसके साथ अपने पति श्रीराम के लिए संदेश भिजवाया कि ओ भाई ! श्रीराम से इतनी सी बात कह देना कि तुमने लोक निन्दा के भय से हमको छोड़ दिया, परन्तु ऐसे ही किसी के भी कहने से घबराकर कभी धर्म को मत छोड़ देना!
हमने जो कमाया, कर्म किया वह ही हमने भोगा, उपभोग किया अर्थात् दुःख उपजाये तो दुःख पाए। पर आप दिन-रात सुखी रहें ऐसी भावना है।
द्यानतराय जी कहते हैं कि इस प्रकार सीता ने अपने मन को स्थिर किया और पवित्र/निर्मल मंत्रों के जपन में लग गई।
रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी
सोर्स: द्यानत भजन सौरभ