अद्भुत छवि जिनराज की | Adbhut chhavi jinraaj ki

(तर्ज : भक्ति का प्रसार है…)

अद्भुत छवि जिनराज की।
महाभाग्य से आज निहारी, जिनप्रतिमा जिन सारखी। टेक।।

अंग अंग से सहज झलकती, वीतरागता सुखकारी।
ध्यान मग्न मुद्रा दर्शावे, ध्येय रूप मंगलकारी ।।1।।

अन्तर्मुख नासादृष्टि प्रभु, देती है मंगल संदेश ।
व्यर्थ नहीं पर में भरमाओ, अंतर में आनंद विशेष ।।2।।

आसन अचल कहे जिनवर का, दु:खमय चंचलता भागे।
थिरता में सुख शान्ति मिलेगी, निज में ही परिणति पागे ।3।।

जिनवर के कर देख छूटती, कर्ता बुद्धि सु दुःखदायी।
पर सन्मुख कर मत फैलाओ, याचक वृत्ति न सुखदायी।4।।

देखो अपने ही अंतर में, सुख का सागर लहरावे।
निजानंद में तृप्त रहो, पद परम सहज ही प्रगटावे ।5।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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