एक गाँव में ग्वाला था, वो तो भोला भाला था।
गया एक दिन वन की ओर, आग लगी थी चारों ओर ।।
उसने देखी अद्भुत चीज, हरा पेड़ था आग के बीच।
जाकर पास उसे देखा, पेड़ में छोटा कोटर था।।
महिमामयी ग्रन्थ पाया, फिर उसका मन हर्षाया।
खुशी-खुशी ले आया घर, उचित स्थान विराजमान कर।।
सोचे मैं तो बुद्धू हूँ, महान ग्रन्थ यह किसको दूँ।
एक दिवस मुनि को बन में, अरे देख सोचा मन में ।।
यह तो कोई भगवन हैं, लगते ये महान जन हैं।
लाकर ग्रन्थ प्रदान किया, महान शास्त्र का दान दिया ।।
उसको जो उपदेश मिला, उससे सत् संस्कार पड़ा।
उन सतू संस्कारों से, कुन्दकुन्द वह बना अरे।।
भव्यजनो अब हम सब भी, जो हैं सत् संस्कार सभी ।
उनको आदर्श बनायें हम, जीवन में में अपनाये हम ।।
समयसार को पढ़ कर के, सद् संस्कार जगायें हम।
ज्ञान संस्कारों को पाकर, कुन्दकुन्द बन जायें हम।।
Artist: बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source: बाल काव्य तरंगिणी