अभी-अभी मेरे मन में ये भाव आया है,
तत्त्वोपदेश सुनाया गया है मेरे लिए॥ टेक॥
मोह की नींद से व चेतन तुझे उठाने को,
राग का राग सब ही तुझे छुड़ाने को।
ज्ञान का दीप जलाया गया है तेरे लिए ॥१॥
शुभ-अशुभ में अनादि से खड़ा था मैं,
चारों गतियों में न जाने कहाँ पड़ा था मैं।
किन्तु इस बार बचाया गया है, मेरे लिए ॥२॥
मोह को जीत निज में आऊँगा,
आठों कर्मों को मैं अब तो भगाऊँगा।
मोक्ष का द्वार समान गया है मेरे लिए ॥३॥
मैं तो हूँ एक पूर्ण निश्चित ही,
मैं अधूरा नहीं हूँ किंचित् भी।
सिद्धों का धाम बताया गया है मेरे लिए ॥४॥