अब नित नेमि नाम भजौ ॥ टेक ॥
राग ख्याल
अब नित नेमि नाम भजौ ॥ टेक ॥
सच्चा साहिब यह निज जानौ और अदेव तजौ ॥ १ ॥
चंचल चित्त चरन थिर राखो, विषयनतैं वरजौ ॥ २ ॥
आननतैं गुन गाय निरन्तर पानन पांय जजौ ॥ ३ ॥
‘भूधर’ जो भवसागर तिरना, भक्ति जहाज सजौ ॥ ४ ॥
अर्थ- हे जीव ! अब सदा नेमिनाथ का नाम जप, उनका भजन कर। ये ही सच्चे साहिब (पूज्य) हैं, ऐसा मन में जानो। जो देव नहीं हैं उनकी मान्यता को छोड़ो।
अपने चंचल चित्त को प्रभु के चरणों में स्थिर रखकर इन्द्रिय-विषयों को छोड़ो, उनसे बचो।
अपने मुँह से सदैव प्रभु के गुण गावो और दोनों हाथों से उनके चरणों की पूजा करो, उनमें नत हो जाओ, उनमें नमन करो।
भूधरदास जी कहते हैं कि जो भवसागर से तिरना चाहते हो तो भक्तिरूपी नैया/ नौका को सुशोभित करो, उसे सजाओ।
रचयिता: पंडित श्री भूधरदास जी
सोर्स: भूधर भजन सौरभ