अब मैं मम मंदिर में रहूंगा। Ab main Mam Mandir me Rahunga

अब मैं मम मन्दिर में रहूँगा ।।टेक।।

अमिट, अमित अरु अतुल, अतीन्द्रिय,
अरहन्त पद को धरूँगा
सज, धज निज को दश धर्मों से -
सविनय सहजता भजूँगा ।। अब मैं ।।

विषय - विषम - विष को तजकर उस -
समरस पान मैं करूँगा।
जनम, मरण अरु जरा जनित दुख -
फिर क्यों वृथा मैं सहूँगा? ।। अब मैं । ।

दुख दात्री है इसीलिए अब -
न माया - गणिका रखूँगा।।
निसंग बनकर शिवांगना संग -
सानन्द चिर मैं रहूँगा ।।अब मैं । ।

भूला, पर में फूला, झूला -
भावी भूल ना करूँगा।
निजमें निजका अहो! निरन्तर -
निरंजन स्वरूप लखूँगा ।। अब मैं । ।

समय, समय पर समयसार मय -
मम आतम को प्रनमुँगा।
साहुकार जब मैं हूँ, फिर क्यों -
सेवक का कार्य करूँगा ? ।।अब मैं । ।

रचयिता : आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

2 Likes